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रतनपुर में भ्रष्टाचार की नई गाथा — जमीन, कमीशन और ठेकेदारों के खेल में उलझा नगर भवन.. पढ़ें किसको होगा फायदा

रतनपुर…नगर पालिका परिषद रतनपुर एक बार फिर विवादों के केंद्र में है। इस बार मामला नवीन पालिका कार्यालय भवन के निर्माण स्थल को लेकर लिए गए उस फैसले का है जिसने पूरे शहर में हलचल मचा दी है। नगर के नागरिकों और पूर्व परिषद द्वारा पारित सर्वसम्मत निर्णय को नज़रअंदाज़ कर, नवनिर्वाचित अध्यक्ष लव कुश कश्यप ने कार्यालय भवन को शहर से लगभग 6 किलोमीटर दूर शिफ्ट करवा दिया। इस कदम ने न केवल नागरिकों में असंतोष पैदा किया है बल्कि नगर पालिका में व्याप्त भ्रष्टाचार और स्वार्थ की एक नई कहानी को जन्म दे दिया है।

सुनसान इलाके में भूमि पूजन से भड़की जनता

रतनपुर में नगर पालिका कार्यालय पंचायत काल से ही शहर के मध्य महामाया मंदिर गेट के पास स्थित है। यह स्थान न केवल भौगोलिक रूप से सुविधाजनक है बल्कि नागरिकों की रोजमर्रा की समस्याओं—जन्म-मृत्यु प्रमाण पत्र, नल–घर कर, आवास, नाली–सड़क, पेयजल और नक्शा पास जैसी सेवाओं—के लिए सबसे सुलभ केंद्र रहा है।

पूर्व परिषद ने वर्ष 2023 में सर्वसम्मति से निर्णय लिया था कि नया कार्यालय भवन भी इसी स्थान पर बनाया जाएगा ताकि नागरिकों को किसी प्रकार की असुविधा न हो। इसके विपरीत, नवनिर्वाचित अध्यक्ष लव कुश कश्यप ने इस फैसले को पलटते हुए कार्यालय भवन निर्माण का भूमि पूजन शहर से छह किलोमीटर दूर लखनी देवी के आगे कोटा रोड के सुनसान इलाके में करवा दिया। इस निर्णय से नागरिकों में गहरी नाराज़गी है।

आपत्ति को किया गया नज़रअंदाज़

1 अगस्त 2023 को रतनपुर के प्रतिष्ठित और पंजीकृत संस्थान “ज्येष्ठ नागरिक संघ रतनपुर” ने नगर पालिका भवन को शहर से बाहर ले जाने का स्पष्ट विरोध किया था। इस मांग का समर्थन करते हुए 11 अगस्त 2023 को भाजपा नेताओं और पूर्व परिषद ने सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित कर कार्यालय भवन को यथास्थान शहर के मध्य में ही बनाने का निर्णय लिया।

इस निर्णय की विधिवत जानकारी 14 अगस्त को नगरीय निकाय एवं प्रशासन विभाग रायपुर को भेजी गई। यहां तक कि कोटा विधायक अटल श्रीवास्तव ने भी उच्च अधिकारियों को पत्र लिखकर भवन को शहर के अंदर ही बनाए रखने की मांग की थी। इसके बावजूद, नवनिर्वाचित अध्यक्ष ने इन सभी आपत्तियों और नागरिक भावनाओं की पूरी तरह अनदेखी की।

जमीन, कमीशन और ठेकेदारों के खेल

रतनपुर में अब इस फैसले को लेकर तरह-तरह की चर्चाएँ हो रही हैं। कुछ लोगों का कहना है कि अध्यक्ष और उनके रिश्तेदारों की जमीनें जूना शहर के पास स्थित हैं। कार्यालय भवन को शहर से बाहर ले जाने का निर्णय इन जमीनों के मूल्य और उपयोगिता को बढ़ाने के स्वार्थ से प्रेरित बताया जा रहा है।

दूसरी ओर, यह भी चर्चा है कि भवन निर्माण के टेंडर में डिस्मेंटलिंग का कार्य शामिल नहीं है, जिससे ठेकेदारों को घाटा हो सकता था। आरोप है कि अपने निकटस्थ ठेकेदारों को लाभ पहुँचाने के उद्देश्य से ही अध्यक्ष ने भवन को बाहर शिफ्ट करने पर ज़ोर दिया। चाहे सच्चाई कुछ भी हो, यह तय है कि इस कदम से आम नागरिकों की सुविधा पर सीधा प्रहार हुआ है।

एकजुटता बनाम अध्यक्ष की हठधर्मिता

रतनपुर में आज स्थिति यह है कि सभी राजनीतिक दलों के नेता, पार्षद और नागरिक एक तरफ खड़े हैं, जबकि अध्यक्ष अकेले अपनी ज़िद पर अड़े हुए हैं। जब नागरिकों की मांग स्पष्ट है, पूर्व परिषद का निर्णय सर्वसम्मत है और विधायक तक इस मुद्दे पर समर्थन कर चुके हैं, तो फिर अध्यक्ष आखिर किस दबाव या स्वार्थ में यह जनविरोधी कदम उठाए हुए हैं—यह सवाल अब पूरे क्षेत्र में चर्चा का विषय बन चुका है।

जनता हाशिये पर, भ्रष्टाचार केंद्र में

रतनपुर नगर पालिका परिषद की यह कहानी सिर्फ एक भवन निर्माण स्थल के बदलाव की नहीं, बल्कि जनभावनाओं की अनदेखी और सत्ता के दुरुपयोग की गहरी मिसाल बन चुकी है। जब सारे निर्णय, दस्तावेज़ और जनता की मंशा भवन को शहर के मध्य में रखने के पक्ष में हैं, तब अध्यक्ष का यह रुख कई गंभीर सवाल खड़े करता है। यह मामला न सिर्फ स्थानीय प्रशासन के लिए बल्कि शासन और निगरानी एजेंसियों के लिए भी चेतावनी है कि रतनपुर में नगर सरकार की दिशा जनहित से भटक चुकी है।

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