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CG NEWS:इस “विस्तार” से “सिकुड़” गया बिलासपुर का दायरा…!

CG NEWS:( गिरिजेय ) “छत्तीसगढ़ में मंत्रिमंडल का विस्तार हुआ । लेकिन बिलासपुर का दायरा सिकुड़ गया। बिलासपुर के हिस्से में जीरो बटा सन्नाटा नजर आ रहा है….।” मंत्रिमंडल के विस्तार का विश्लेषण बिलासपुर में खड़े होकर एक वाक्य में कुछ इसी तरह किया जा सकता है। यह बीजेपी का प्रयोग है.. या संयोग  …?  लेकिन बिलासपुर की सियासी तासीर के साथ फिट नहीं बैठ रहा है । इस सिकुड़न से बिलासपुर वालों को हैरत भी हुई है और पुराने दिनों की याद करने लगे हैं। ऐसा दौर कम ही आया है, जब बिलासपुर के विधायक को मंत्रिमंडल में जगह ना मिल पाई हो। बिलासपुर शहर के साथ ही जिले के दिग्गज नेताओं को मंत्री पद मिलता रहा है। इसकी फेहरिश्त बहुत लम्बी है । जो छोटी होते- होते अब शून्य में गुम हो गई है। इतिहास गवाह है—मध्यप्रदेश के जमाने से लेकर छत्तीसगढ़ बनने तक, यहां के विधायकों की कुर्सी सीधा मंत्रालय तक पहुंचती रही है। कभी कांग्रेस, कभी बीजेपी… हर दौर में बिलासपुर की आवाज सत्ता के गलियारों तक गूंजती रही। लेकिन इस बार तो हाल यह है कि सत्ता की चौखट पर बिलासपुर की दस्तक भी सुनाई नहीं दी।

मंत्रिमंडल में बिलासपुर शहर सहित जिले को कोई प्रतिनिधित्व नहीं मिल सका। जबकि इस जिले में बीजेपी के कई कद्दावर नेता है। बिलासपुर विधायक अमर अग्रवाल 15 साल तक प्रदेश सरकार में मंत्री रहे। बिल्हा विधायक धरमलाल कौशिक छत्तीसगढ़ विधानसभा के अध्यक्ष रह चुके हैं। वे विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष  और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष की जिम्मेदारी भी संभाल चुके हैं। तखतपुर विधायक धर्मजीत सिंह छत्तीसगढ़ विधानसभा के उपाध्यक्ष रहे और लगातार चुनाव जीतने की वजह से इस इलाके की राजनीति में उनकी एक अलग पहचान है। उम्मीद की जा रही थी कि मंत्रिमंडल विस्तार में उत्तर छत्तीसगढ़ के प्रमुख केन्द्र बिलासपुर को प्रतिनिधित्व मिलेगा। लेकिन ऐसी उम्मीद लगाए लोगों को निराशा हुई है। भाजपा की राजनीति करने वाले लोगों को तो हैरत हुई, विरोधी पक्ष को भी ऐसी उम्मीद नहीं थी। यहां तक की आम लोग भी आपस में चर्चा कर रहे हैं कि बिलासपुर का राजनीतिक वजन घट गया है। लोग पिछले पन्ने भी पलट रहे हैं।

बिलासपुर शहर और जिले का इतिहास बताता है कि अविभाजित मध्य प्रदेश से लेकर छत्तीसगढ़ तक हर समय यहां के विधायकों को मंत्री पद मिलता रहा है। अविभाजित मध्य प्रदेश की बात करें तो आजादी के बाद हुए चुनाव में बिलासपुर विधानसभा सीट से डॉ. शिव दुलारे मिश्र विधायक चुने गए थे। बताया जाता है कि उन्हें तब के मुख्यमंत्री पं. रविशंकर शुक्ल ने मंत्री पद का ऑफर दिया था। लेकिन उन्होंने बिलासपुर विधायक के रूप में ही जन सेवा करने का फैसला किया और मंत्री बनने से इनकार कर दिया था। इसके बाद डॉ. रामाचरण राय बिलासपुर के विधायक बने और उन्हें मध्य प्रदेश सरकार में मंत्री बनाया गया था। मध्य प्रदेश विधानसभा में बिलासपुर विधानसभा सीट से डॉ. श्रीधर मिश्र ने विधायक के रूप में प्रतिनिधित्व किया। उन्हें भी मंत्री पद मिला। बाद के दौर में बी.आर. यादव बिलासपुर के विधायक बने तो कांग्रेस सरकार ने उन्हें भी मंत्री बनाया। इस तरह कांग्रेस के दौर में मध्य प्रदेश सरकार में बिलासपुर विधानसभा सीट से चुनकर आने वाले विधायकों को मंत्री बनाया जाता रहा। 1990 में मध्य प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी तो उस समय बिलासपुर के विधायक मूलचंद खंडेलवाल भी मंत्री बनाए गए। इस तरह बीजेपी की सरकार में भी यह सिलसिला बरकरार रहा। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद बीजेपी की सरकार में बिलासपुर के विधायक अमर अग्रवाल मंत्री बनाए गए और लगातार 15 साल तक कई विभागों की जिम्मेदारी संभाली। 2018 में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद यह सिलसिला टूटा और बिलासपुर के विधायक शैलेश पांडे को मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिल सकी थी। एक बार फिर बीजेपी की सरकार बनी तो बिलासपुर मंत्री विहीन है। दिलचस्प बात यह भी है कि बी.आर.यादव एक बार हारने के बाद दोबारा विधायक चुनकर आए तो उनका कद और बढ़ गया था।दिग्गी राजा की सरकार में उन्हें मंत्री बनाकर बड़ी जिम्मेदारी दी गई थी। इस बार यह सिलसिला भी टूट गया ।

मध्य प्रदेश के जमाने में अविभाजित बिलासपुर जिले की बात करें तो आजादी के बाद के दौर में अनुसूचित जाति वर्ग के गणेश राम अनंत, आदिवासी नेता प्यारेलाल कंवर सहित मथुरा प्रसाद दुबे, बिसाहू दास महंत,डॉ. भंवर सिंह पोर्ते, वेदराम ,चित्रकांत जायसवाल, डॉ. चरण दास महंत, सुरेन्द्र बहादुर सिंह जैसे कांग्रेस के विधायकों ने मंत्रिमंडल में इस इलाके का प्रतिनिधित्व किया। भाजपा में जांजगीर- चांपा इलाके के नेता बलिहार सिंह, बिलासपुर के मनहरण लाल लाल पांडे, मुंगेली के डॉ. भानु गुप्ता, बशीर खाँ, कोरबा के ननकीराम कंवर भी मंत्री रहे हैं। बाद के दौर में बंशीलाल धृतलहरे, अशोक राव को भी कांग्रेस ने मंत्री बनाया था। कोटा इलाके से लगातार चुनाव जीतने वाले राजेंद्र प्रसाद शुक्ला मध्य प्रदेश और बाद में छत्तीसगढ़ विधानसभा के अध्यक्ष रहे।वे मध्यप्रदेश सरकार में मंत्री भी रहे। छत्तीसगढ़ बनने के बाद अजीत जोगी मुख्यमंत्री पहले मुख्यमंत्री बने। वे अविभाजित बिलासपुर जिले के मरवाही विधानसभा सीट से चुनाव जीतते रहे हैं। मुंगेली से जीतकर आने वाले पुन्नू लाल मोहले और मस्तूरी विधायक रहे डॉ. कृष्णमूर्ति बांधी भी बीजेपी की सरकार में मंत्री पद संभालते रहे हैं। बीजेपी ने बिलासपुर जिले के बिल्हा विधायक धरमलाल कौशिक को विधानसभा स्पीकर बनाया था।

यह रिकार्ड बताता है कि अविभाजित मध्य प्रदेश से लेकर छत्तीसगढ़ तक तमाम सरकारों में बिलासपुर शहर और इस इलाके का दबदबा रहा है। देखा जाए तो जिस पार्टी ने सरकार बनाई है उस पार्टी के दिग्गज नेताओं को इस इलाके के लोगों ने भरोसे के साथ चुनकर भेजा है। जाहिर सी बात है कि कद्दावर नेताओं की मौजूदगी में आम लोगों को भी उम्मीद रहती है कि इस इलाके से चुनकर जाने वाले विधायकों को सरकार में जगह मिलेगी। विकास की उम्मीदों के साथ ही आम लोगों को इन नेताओं का दबदबा भी भरोसेमंद बनाता है। जिसे मंत्री स्तर पर कभी काम ना पड़े, उसे भी लगता है कि अपने शहर का मंत्री होना चाहिए। कुछ नेता ऐसे हैं, जिन्हें वोट देते समय लोगों को उम्मीद रहती है कि अगर इस पार्टी की सरकार बनी तो मंत्री पद ज़रूर मिलेगा। कई दशक से यह देखते – देखते इस शहर और इलाके की सियासी तासीर ही ऐसी बन गई है कि अपने आसपास का कोई मंत्री ना हो तो अपनी सरकार का अहसास नहीं होता। लेकिन बदले हुए दौर की राजनीति में तस्वीर उलटती नज़र आ रही है । कद्दावर नेताओं की मौजूदगी के बावजूद इलाके का सियासी दायरा सिमटता जा रहा है और दबदबा कमजोर होने के साथ ही नेतृत्व की धमक शून्यता की ओर बढ़ती जा रही है। जिले की सियासत में इसका असर तो होगा। लेकिन संयोग और प्रयोग के इस खेल का नतीजा आने वाला वक्त ही तय करेगा। अब इसे बदले हुए दौर की राजनीति कहिए या नेतृत्व की बदलती प्राथमिकताएं, लेकिन यह साफ है कि बिलासपुर का वजन तराजू से उतारकर सीधे खाली तख्ती पर रख दिया गया है। नतीजा—जिस शहर की पहचान ‘सियासी हब’ रही है, वहां आज लोग पुराने दिन याद कर रहे हैं।सवाल यह है कि यह “सिकुड़न” बिलासपुर की सियासत को स्थायी चोट देगी या यह महज़ एक दौर का इम्तिहान है। अभी तो यही लगता है कि बीजेपी ने बिलासपुर की ताकत को पॉज़”  पर डाल दिया है। अब “प्ले” बटन कब दबेगा, यह आने वाला वक्त ही बताएगा।

 

 

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