
बिलासपुर…छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में स्पष्ट किया है कि किसी नाबालिग लड़की को “आई लव यू” कहना, यदि इसमें यौन मंशा स्पष्ट नहीं है, तो इसे यौन उत्पीड़न नहीं माना जा सकता। अदालत ने कहा कि केवल प्रेम प्रस्ताव देना, यौन अपराध की श्रेणी में तब तक नहीं आता जब तक कि यह साबित न हो जाए कि ऐसा कहने के पीछे यौन उद्देश्य था।
यह टिप्पणी जस्टिस संजय एस. अग्रवाल की एकलपीठ ने एक आपराधिक अपील की सुनवाई करते हुए दी। यह मामला वर्ष 2019 का है, जब एक 15 वर्षीय छात्रा ने शिकायत दर्ज कराई थी कि स्कूल से घर लौटते समय एक युवक ने उसका पीछा किया और “आई लव यू” कहकर प्रेम प्रस्ताव दिया। छात्रा के अनुसार युवक पहले से उसे परेशान करता रहा था।
क्या था मामला?
छात्रा की शिकायत पर पुलिस ने आरोपी युवक के खिलाफ IPC की धारा 354D (पीछा करना), 509 (लज्जा भंग), POCSO एक्ट की धारा 8 (यौन उत्पीड़न) और SC/ST एक्ट की धारा 3(2)(va) के तहत मामला दर्ज किया था। ट्रायल कोर्ट ने सबूतों के अभाव में युवक को बरी कर दिया। राज्य सरकार ने इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।
हाईकोर्ट की टिप्पणी:
हाईकोर्ट ने राज्य की अपील को खारिज करते हुए कहा:
“केवल ‘आई लव यू’ कहने मात्र से यह सिद्ध नहीं होता कि युवक की मंशा यौन थी। अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत गवाहियां इस बात को प्रमाणित नहीं करतीं कि आरोपी की कोई यौन इच्छा थी।”
अदालत ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को सही ठहराते हुए आरोपी को बरी करने का निर्णय बरकरार रखा।
क्या है इस फैसले का कानूनी महत्व?
- यह फैसला भारतीय न्याय प्रणाली में ‘यौन मंशा’ की स्पष्ट परिभाषा की आवश्यकता और POCSO अधिनियम के दुरुपयोग की संभावना पर प्रकाश डालता है।
- अदालत ने भावनाओं और कानून के बीच संतुलन बनाते हुए यह स्पष्ट किया कि हर भावनात्मक या रोमांटिक कथन यौन अपराध की श्रेणी में नहीं आता।