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गड़बड़झाला’: स्थानांतरण सूची में अनियमित कर्मचारी का नाम…शिकायत पर उठा तूफान

बिलासपुर.. जिला प्रशासन की ट्रांसफर सूची में भारी अनियमितता सामने आई है। स्थानांतरण की अनुमोदित सूची में 10 नामों की जगह 11 नाम दर्ज होने से हड़कंप मच गया है। इस मामले ने जिला प्रशासन की कार्यप्रणाली और पारदर्शिता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। आरोप हैं कि ट्रांसफर प्रक्रिया में बड़ा ‘खेल’ किया गया है।

अनियमित महिला कर्मचारी का स्थानांतरण

सबसे गंभीर मामला पशु चिकित्सा विभाग की परिचारिका मनीषा सिंह का है, ग्राम मोहतरा (बिल्हा ब्लॉक) की निवासी हैं। मनीषा आकस्मिक निधि  के अंतर्गत कार्यरत हैं, यानी वह नियमित कर्मचारी नहीं हैं। चौंकाने वाली बात है कि मनीषा ने कभी स्थानांतरण के लिए आवेदन ही नहीं किया, फिर भी उन्हें उनके निवास स्थान से 40–50 किलोमीटर दूर सिंघनपुरी (तखतपुर ब्लॉक) में स्थानांतरित कर दिया गया।

अलग से दर्ज किया गया नाम

सूत्रों के अनुसार, अनुमोदन सूची में मनीषा का नाम 11वें नंबर पर अलग से दर्ज है, जबकि सूची मूलतः 10 कर्मचारियों के लिए स्वीकृत की गई थी। मनीषा सिंह अपने पति अजय कुमार सिंह के साथ कलेक्ट्रेट पहुंचीं और कलेक्टर से ट्रांसफर रद्द करने की मांग की। उन्होंने कहा कि उनके छोटे बच्चे हैं और इस अचानक हुए तबादले से उनका पारिवारिक जीवन प्रभावित हो रहा है।

बिना सहमति ‘आपसी’ स्थानांतरण

दूसरा गंभीर मामला राजस्व विभाग के चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी हितेश कुमार से जुड़ा है। कोटा तहसील में कार्यरत थे। उनका तबादला बिलासपुर तहसील कर दिया गया है। आदेश में इसे ‘आपसी स्थानांतरण’ बताया गया है। हितेश का कहना है कि उन्होंने न तो कभी आवेदन दिया, न ही किसी म्यूचुअल ट्रांसफर की सहमति दी।

हितेश ने बताया कि बिलासपुर तहसील का एक कर्मचारी जरूर उनसे सहमति लेने आया था, लेकिन उन्होंने स्पष्ट मना कर दिया था। इसके बावजूद ट्रांसफर आदेश में उनका नाम और म्यूचुअल ट्रांसफर का उल्लेख होना प्रशासनिक प्रणाली पर बड़ा प्रश्नचिन्ह है।

जवाब देने से बचते नजर आए

इस पूरे मामले में जिला प्रशासन के वित्त एवं स्थापना विभाग के प्रमुख जमुना प्रसाद   ने यह कहते हुए  पल्ला झाड़ लिया कि इस विषय में स्थापना शाखा के प्रभारी  नजूल अधिकारी एस.एस. दुबे से जानकारी ली जाए।

गड़बड़ियों की जाँच जरूरी

मामला न केवल प्रशासनिक लापरवाही बल्कि कथित मिलीभगत का भी संकेत देता है। अनियमित कर्मचारी का स्थानांतरण और म्यूचुअल ट्रांसफर बिना सहमति – दोनों ही उदाहरण बताते हैं कि जिला स्तर पर ट्रांसफर प्रक्रिया कितनी अपारदर्शी हो चुकी है।  देखना यह है कि जिला प्रशासन इस ‘गड़बड़झाले’ की जांच करता है या फिर इसे भी रूटीन फाइलों के ढेर में दफन कर दिया जाएगा।

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