शिक्षा विभाग में फिर प्रभारवाद….? अदालत के आदेश के बाद भी गल्ती क्यों दोहरा रहा है विभाग… ?

बिलासपुर (मनीष जायसवाल )। स्कूल शिक्षा विभाग में यह महीना वरिष्ठ प्राचार्यो और सहायक विकास खंड शिक्षा अधिकारीयों के लिए भले ही अच्छा नहीं गुजरा हो लेकिन व्याख्याताओं और प्रधान पाठकों के लिए लाटरी निकलने जैसा रहा है। विभाग ने पहली बार इतनी बड़ी संख्या में इन्हें प्रभारी विकासखण्ड शिक्षा अधिकारी का प्रभार और कई अन्य पदों पर अफसरों का प्रभार सौंप दिया है। इनके अनुभव,सेवा समर्पण और त्याग को देखते हुए यह साहसिक कदम उठाया गया है..। कहा जा रहा है प्रभारवाद का पुराना प्रयोग मोदी की गारंटी के बजाय भूपेश मॉडल के रेवड़ी अभियान के क्रमिक विकास से का ही हिस्सा है..। जिससे छत्तीसगढ़ की शिक्षा व्यवस्था और सियासत में कोई बड़ा विवाद न हो, इस पर भी संशय बना रहेगा..।
गजेंद्र यादव पहली बार विधायक बने और महीने भर पहले ही मंत्री बने है..। श्री यादव के पास विधि-विधायी कार्य मंत्रालय का प्रभार भी है, इसलिए सबको उम्मीद थी कि स्कूल शिक्षा विभाग के नीतिगत फैसले अति उत्साही ढंग की बजाय अधिक जांचे परखे हुए होंगे..। लेकिन अभी चुप्पी साधे वरिष्ठ प्राचार्यो और सहायक विकास खंड शिक्षा अधिकारियो की बजाय व्याख्याताओं को प्रभारी बीईओ बनाने का निर्णय विभाग की नीतियों और नियमों से मेल खाता नहीं दिख रहा..।
आज भी प्रदेश में व्याख्याताओं को अध्यापन के मूल काम से अलग प्रतिनियुक्ति पर कही मिशन समन्वयक और अन्य प्रशासनिक जिम्मेदारियों में भी पदस्थ किया जा रहा है..। वर्तमान में शिक्षक से व्याख्याताओं के पदोन्नति की काउंसलिंग चल रही है..। उसके बाद भी अनुमान है कि व्याख्याता की कमी बरकरार रहेगी और नई भर्ती से भी यह कमी पूरी न हो पाए..। ऐसे परिवेश में विभाग को बिना राजपत्र संशोधन के व्याख्याता को प्रभारी बीईओ बना देना विभाग को अदालत में उलझा सकता है…।
क्योंकि तारीखें गवाह है कि छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने 18 सितम्बर 2024 को दयाल सिंह व्याख्याता शा.हा.से. स्कूल इंदूराई वि.ख. कवर्धा जिला कबीरधाम बनाम छ.ग. शासन एवं संजय जायसवाल व्याख्याता एलबी प्रभारी बीईओ कवर्धा के प्रकरण (WPS 8178/2022, अवमानना याचिका 779/2023) में साफ टिप्पणी की थी कि व्याख्याताओं को शैक्षणिक कार्यो के लिए नियुक्त किया गया है और उन्हें प्रभारी बीईओ बनाकर विभाग जनशक्ति का गलत उपयोग कर रहा है..। न्यायालय ने विभाग से शपथ पत्र प्रस्तुत करने को कहा कि इस विसंगति से शिक्षा स्तर पर जो दुष्परिणाम हुए हैं उन्हें दूर करने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे है..। साथ ही शासन से यह जानकारी भी मांगी गई थी कि कितने प्राचार्य और सहायक बीईओ पांच वर्ष की सेवा पूरी कर चुके हैं और उन्हें प्रभार दिया गया है।
पांचवी पास समझ सकता है कि एकदम सरल सा आदेश है कि छत्तीसगढ़ स्कूल शिक्षा सेवा भर्ती एवं पदोन्नति नियम 2019 कहता है कि बीईओ बनाए जाने की पात्रता उन्हीं को है जो पांच वर्ष से प्राचार्य वर्ग-2 या सहायक विकासखण्ड शिक्षा अधिकारी के पद पर सेवारत हों। व्याख्याताओं को यह पात्रता प्राप्त नहीं है। शिक्षा मंत्री की पहली तबादला सूची में छत्तीसगढ़ शिक्षा सेवा भर्ती पदोन्नति नियम 2019 की जगह प्रभारवाद का बोलबाला साफ दिखाई देता है।
इस विषय में उच्च न्यायालय पहले भी कई बार अपना मत स्पष्ट कर चुका है। प्रमुख मामलों में डी.एन. मिश्र बनाम छ.ग. शासन WPS 6869/2019, फूलसाय मरावी बनाम छ.ग. शासन WPS 7279/2022, बी.एस. बंजारे बनाम छ.ग. शासन WPS 7123/2022, मुकेश मिश्रा बनाम छ.ग. शासन WPS 5176/2021, महेंद्र धर दिवान बनाम छ.ग. शासन WPS 4029/2021, अमर सिंह धृत लहरे बनाम छ.ग. शासन WPS 7207/2019, दयाल सिंह बनाम छ.ग. शासन WPS 2280/2021, जी.पी. बनर्जी बनाम छ.ग. शासन WPS 7165/2022, आलोक सिंह बनाम छ.ग. शासन WPS 7762/2022, संतोष सिंह बनाम आलोक सिंह व छ.ग. शासन WPS 8021/2022 और रमाकान्त देवांगन बनाम छ.ग. शासन WPS 8244/2021 जैसे फैसले शामिल हैं। इन सभी में व्याख्याताओं को प्रभारी बीईओ के लिए अपात्र घोषित किया गया।
सिर्फ इतना ही नहीं छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग से चयनित स्कूल शिक्षा विभाग के पास ऐसे अफसरों की फौज भी है जो यह खोज लाए कि सुप्रीम कोर्ट में भी मामला स्पष्ट किया गया है..। प्रकरण SLP (C) CC No. 3449/2015 विनोद यादव बनाम छ.ग. शासन में राज्य शासन ने शपथ पत्र प्रस्तुत कर कहा था कि शैक्षणिक और प्रशासनिक दो अलग-अलग कैडर बनाए गए हैं और एक कैडर के अधिकारी दूसरे कैडर में नहीं जा सकते। लेकिन इस वचन का पालन अधूरा ही रहा।
विषय इसलिए भी खास है क्योंकि छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय में सबसे अधिक न्यायालयीन प्रकरण चर्चा में स्कूल शिक्षा विभाग के रहे है…। अब स्कूल शिक्षा मंत्री के पास विधि विभाग है…। ऐसे में सवाल उठना स्वाभाविक है कि जब न्यायालय बार-बार स्पष्ट कर चुका है और खुद शासन ने सर्वोच्च अदालत में कैडर अलग होने की बात स्वीकार की है, तब भी विभाग बार-बार उसी गलती को क्यों दोहरा रहा है। महज एक महीने में ही नए मंत्री के कार्यकाल की शुरुआत में ही व्याख्याताओं से प्राचार्य पदोन्नति की काउंसलिंग के तरीके, उच्च वर्ग शिक्षकों की पदोन्नति और अब व्याख्याता को प्रभारी बीईओ बनाने जैसे विवाद लगातार जुड़ते जा रहे है..। शिक्षा व्यवस्था को प्रभारवाद के फार्मूले से गति देने का यह कदम कहीं विभाग को अपने ही बनाए नियमों पर ठोकर खाकर फिर अदालत की चौखट पर न पहुंचा दे इसके आसार अधिक लगते है..।