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CG NEWS:बी.एड. वाले शिक्षकों को समायोजन से मिलेगी स्थाई राहत…. ! या और भी पेंच बाकी हैं… ?

CG NEWS:बिलासपुर  ।अक्षय तृतीया के दिन छत्तीसगढ़ की विष्णु देव साय सरकार ने बर्खास्त बी.एड. सहायक शिक्षकों के लिए महत्वपूर्ण निर्णय लिया। लंबे आंदोलन और जन समर्थन को देखते हुए सरकार ने 2,621 बी.एड. योग्यताधारी शिक्षकों को सहायक शिक्षक विज्ञान (प्रयोगशाला) के पद पर समायोजित करने का आदेश जारी किया। यह फैसला अंतर्विभागीय समिति की अनुशंसा पर आधारित है। साथ ही अन्य पिछड़ा वर्ग के 355 अभ्यर्थियों के लिए सांख्येत्तर पद सृजित किए गए।

हालांकि यह निर्णय सकारात्मक दिखता है लेकिन कानून विशेषज्ञों की राय इससे अलग है। छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के अधिवक्ता गोविंद देवांगन के अनुसार यह फैसला संविधान के अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता) और अनुच्छेद 16 (सार्वजनिक रोजगार में अवसर की समानता) का उल्लंघन कर सकता है। उनका कहना है कि बिना प्रतियोगी परीक्षा या विज्ञापन के समायोजन से बेरोजगार उम्मीदवारों के अधिकारों का हनन हो सकता है। वित्त मंत्री ओपी चौधरी ने अपनी इस विषय पर उपलब्धि को लेकर एक फेसबुक पोस्ट की थी उसमें कुछ लोगों के कमेंट्स यह संकेत दे रहे है कि इस नीतिगत निर्णयों में कानूनी पहलुओं को नजर अंदाज किया गया है।

कर्मचारी नेताओं का एक वर्ग बी.एड. शिक्षकों के पक्ष में रहा है। शिक्षक संघ के नेताओं का मानना है कि सरकार का यह कदम इन शिक्षकों की स्थिति अनुभव और आंदोलन को सम्मान देता हुआ एक अच्छा निर्णय है लेकिन इन जानकारों के पास ऐसा ठोस तर्क नहीं है जो इस निर्णय को पूर्णतः वैध साबित करे। अधिकांश के पास यही सूत्र था कि सरकार के पास अपार शक्तियां होती है निर्णय ले सकती है।

यह निर्णय इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि छत्तीसगढ़ में बेरोजगारों की एक बड़ी संख्या कोचिंग संस्थानों में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रही है। यदि बेरोजगार इस समायोजन को न्यायालय में चुनौती देते हैं जिसकी परिस्थितियां बन रही है तो सरकार को अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए कानूनी तर्क देना होगा। सबसे महत्वपूर्ण बात प्रदेश में सैकड़ो की संख्या में चल रहे प्रतियोगी परीक्षाओं के कोचिंग संचालक भी नहीं चाहेंगे कि इतनी बड़ी संख्या में भर्ती बिना विज्ञापन के हो। सवाल उनकी भी अपने व्यावसायिक लाभ हानि से जुड़ा हुआ है।

दूसरी ओर विधि विशेषज्ञों का एक मत यह भी है कि यह समायोजन तर्कसंगत है। यह निर्णय बर्खास्त शिक्षकों की विशिष्ट स्थिति, उनके पूर्व अनुभव और सरकार की नीतिगत चूक को सुधारने के प्रयास पर आधारित है। सुप्रीम कोर्ट ने 2023 में बी.एड. धारकों को प्राथमिक शिक्षक पदों के लिए अयोग्य माना था। लेकिन अन्य पदों पर समायोजन पर कोई रोक नहीं लगाई। इसलिए तकनीकी रूप से यह नीति सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लंघन नहीं करता हुआ दिखाई दे रहा है ।साथ ही 4,422 रिक्त पदों में से 2,621 पदों पर समायोजन शिक्षा व्यवस्था को तत्काल मजबूत करने का प्रभावी कदम है।

फिर भी यदि यह निर्णय न्यायालय में चुनौती का सामना करता है, तो सबसे अधिक नुकसान इन शिक्षकों का होगा। 14 दिसंबर 2024 से शुरू हुए इनके आंदोलन में 126 दिनों तक धरना, जल सत्याग्रह, और 2,621 फीट लंबी चुनरी यात्रा के अलावा अपने हक के लिए आंदोलन से जुड़ी ऐसी कई गतिविधियां की इससे राज्य नहीं केंद्र सरकार तक का ध्यान उनकी मांगों पर गया।
इस दौरान इन्होंने बहुत तकलीफ झेली जब से सेवा में आए हैं तब से अनिश्चित के भंवर में रहे हैं। इन शिक्षकों की पीड़ा को शब्दों में बयान करना मुश्किल है.! यदि समायोजन न्यायालय तक गया तो ये शिक्षक फिर से अनिश्चितता के भंवर में फंस जाएंगे।

राजनीतिक दृष्टिकोण से सरकार इस निर्णय के जरिए अपनी जिम्मेदारी पूरी करती दिख रही है। लेकिन स्कूल शिक्षा विभाग का न्यायालयीन मामलों में कमजोर रिकॉर्ड चिंता का विषय है। यदि इस आदेश में कोई कानूनी चूक पाई गई तो शिक्षकों के सपने टूट सकते हैं। शासन तो अपना पल्ला झाड़ कर अलग हो जाएगी।

बीएड धारी सहायक शिक्षकों के समायोजन पर प्रश्न चिन्ह इस लिए भी लग रहा है क्योंकि सरकार की शिक्षा कर्मियों के परिजनों के लिए बनाई गई अनुकंपा नियुक्ति नीति पर भी सवाल उठ रहे हैं। सात साल के कठिन संघर्ष से भरे आंदोलन के बाद 1,200 से अधिक शिक्षाकर्मियों के परिजनों को अनुकंपा नियुक्ति का वादा मिला आदेश हुए, लेकिन अनुकंपा संघ का कहना है अभी तक केवल 29 पात्र अभ्यर्थियों को ही पंचायत विभाग में शिक्षक पद मिला है।उनका भी संविलियन शेष है बाकि के अभ्यर्थियों की शैक्षणिक अर्हता की कमी के कारण उनकी नियुक्ति लटकी हुई है। ये अभी नियमों में छूट का इन्तजार कर रहे है। इसी तरह, एकलव्य स्कूलों के 870 अतिथि शिक्षक, जो 2016 से सेवा में थे, 2023 में नियमित भर्ती के कारण बेरोजगार हो गए और अभी भी अनिश्चितता में हैं। इनके विषय पर भी अभी सिर्फ फाइल दौड़ रही है।

यह मुद्दा केवल छत्तीसगढ़ तक सीमित नहीं है। उत्तर प्रदेश में शिक्षामित्र समायोजन, बिहार में बीपीएससी शिक्षक भर्ती 2023, राजस्थान में 2018 का शिक्षक मामला और उसके बाद की स्थितियां और मध्य प्रदेश में 2024 का बी.एड. समायोजन जैसे मामले न्यायालय में हैं। हाल ही में पश्चिम बंगाल में शिक्षक भर्ती में भ्रष्टाचार का मामला भी सुर्खियों में रहा। सरकार तो इनके समायोजन को लेकर संकेत भी दे चुकी है। लेकिन यह भी होगा कैसे..?

इस बात में दो मत नहीं की बी.एड. योग्यताधारी शिक्षकों को सहायक शिक्षक विज्ञान (प्रयोगशाला) के पद पर समायोजित करने का निर्णय लेने से पूर्व अंतर्विभागीय समिति ने कानूनी पहलुओं का आकलन भी किया होगा। लेकिन यदि इसमें कोई कमी रहती है, तो सत्ता के केंद्र में बैठे व्यवस्था के जिम्मेदार लोग और स्कूल शिक्षा विभाग की नीतियां विपक्ष के निशाने पर होंगी। एक बार फिर बीएड किए हुए बर्खास्त शिक्षक जो अब समायोजित होने वाले हैं वे छले जाएंगे।

इन शिक्षकों के समर्थन में एक आम धारणा बनी है कि उन्होंने सरकार और अधिकारियों की गलतियों का खामियाजा भुगता..! अब सवाल यह है कि क्या यह समायोजन उनके लिए स्थायी राहत लाएगा, या फिर समय का पहिया घूमकर उन्हें दोबारा उसी अनिश्चितता में धकेल देगा..?

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