शिक्षक पात्रता परीक्षा (TET) को लेकर 5 अक्टूबर को दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब में राष्ट्रीय स्तर पर एक मंच पर इकट्ठा होंगे शिक्षक संगठन

रायपुर (मनीष जायसवाल)।सर्वोच्च न्यायालय का देश भर के शिक्षकों के लिए शिक्षक पात्रता परीक्षा (TET) अनिवार्य करने का फैसला अब बड़ा विवाद बनता जा रहा है..। इसी मुद्दे को लेकर 5 अक्टूबर को दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब में राष्ट्रीय स्तर पर शिक्षक संगठन एक मंच पर इकट्ठा होंगे।
दिल्ली पर मंच साझा करने जाने वाले छत्तीसगढ़ सहायक शिक्षक समग्र शिक्षक फेडरेशन के प्रदेश अध्यक्ष मनीष मिश्रा बताते है कि टीईटी मामले को लेकर रणनीति बनाने के लिए उत्तर प्रदेश प्राथमिक शिक्षक संघ ने देश के सभी राज्यों के प्रमुख शिक्षक संगठनों को साझा मंच पर आमंत्रित किया है।
मनीष कहते है कि टीईटी को लेकर हर राज्य की अलग कहानी है। बरसों से सेवा दे रहे शिक्षक को सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय से उनका भविष्य अनिश्चितता भरा लग रहा है। भर्ती और पदोन्नति के समय जिन नियमों और योग्यताओं के आधार पर चयन हुआ था, उन्हें बदलकर अब टीईटी देने के लिए बाध्य करना न्यायोचित तो नही लगता है।
फेडरेशन प्रमुख मनीष मिश्रा का कहना है कि छत्तीसगढ़ में ही शिक्षकों की नियुक्तियां अलग-अलग नियमों और चयन प्रक्रियाओं के माध्यम से हुई है। सभी ने उस समय की आवश्यक योग्यता और मूल्यांकन पूरा किया था। पिछली तारीख से नए नियम थोपना नैसर्गिक न्याय के विरुद्ध है..।
मनीष मिश्रा कहते है यह समस्या सिर्फ छत्तीसगढ़ की नहीं, पूरे देश की है। सुप्रीम कोर्ट का आदेश शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने के लिए है, लेकिन इसे अतीत में लागू करना शिक्षकों के अधिकारों का हनन होगा। पुनर्विचार याचिका ही इसका समाधान है..।
मनीष बताते हैं कि जानकारी आम है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने पुनर्विचार याचिका दाखिल करने का निर्णय लिया है। केरल सरकार भी आदेश को चुनौती देने की तैयारी में है। झारखंड शिक्षक संघ पहले ही समीक्षा याचिका दाखिल कर चुका है। तमिलनाडु में शिक्षक संगठनों ने पुराने शिक्षकों की सेवा सुरक्षा के लिए विशेष कानून की मांग की है। ओडिशा सरकार ने आश्वासन दिया है कि वे शिक्षकों को नुकसान नहीं होने देंगे।
मनीष मिश्रा का कहना है कि अन्य सेवाओं में पदोन्नति अनुभव और सेवाकाल के आधार पर दी जाती है। उदाहरण के लिए राज्य प्रशासनिक सेवा के अफसर IAS या IPS में पदोन्नत होते हैं। उनसे दोबारा पात्रता परीक्षा नहीं ली जाती। फिर शिक्षा विभाग के लिए अलग नियम लागू करना भेद भाव पूर्ण है।
मनीष मिश्रा कहते हैं कि हमारे संगठन का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश से लाखों शिक्षकों का करियर संकट में है। अगर राज्य सरकारें पुनर्विचार याचिका नहीं दाखिल करतीं, तो शिक्षा व्यवस्था और खासकर ग्रामीण स्कूलों पर इसका बड़ा असर पड़ेगा। दिल्ली की बैठक में आगे की दिशा तय होगी और यह स्पष्ट हो जाएगा कि यह आंदोलन कितना व्यापक स्वरूप लेगा..!
बताते चले कि सुप्रीम कोर्ट की डबल बेंच ने RTE अधिनियम 2009 की धारा 23(1) की व्याख्या करते हुए कहा कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का अधिकार तभी संभव है जब सभी शिक्षक टेट उत्तीर्ण हो..। सेवानिवृत्ति में पांच वर्ष से कम सेवा वाले शिक्षकों को बिना टीईटी भी सेवा जारी रखने की अनुमति होगी, लेकिन उन्हें पदोन्नति नहीं मिलेगी। अल्पसंख्यक संस्थानों पर आदेश लागू होगा या नहीं, यह बड़ी पीठ तय करेगी..।