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शिक्षकों के ट्रांसफर में “सबका साथ- सबका विकास” मूल मंत्र लागू होःरीता भगत

बिलासपुर (मनीष जायसवाल) ।छत्तीसगढ़ के स्कूल शिक्षा विभाग में ट्रांसफर का मौसम एक बार फिर गरमाने लगा है।सबसे अधिक जोर बस्तर और सरगुजा संभाग से सुनाई दे रहा है इसमें नई भर्ती वाले शिक्षक जिन्होंने परिवीक्षा अवधि पूरी कर ली है। वे मैदानी क्षेत्रों में जाने की जुगाड़ में है। वही 1998 से सेवा दे रहे पुराने शिक्षक अपनी बारी का इंतजार करते रह है। गुपचुप ट्रांसफर के सिर्फ कयासों से ही शिक्षक समुदाय में असंतोष पनप रहा है।

मालूम हो कि पूर्व की भूपेश बघेल सरकार ने बस्तर और सरगुजा की शिक्षा व्यवस्था को मजबूत करने के लिए 12,489 पदों पर विशेष भर्ती की थी। इसमें 6,285 सहायक शिक्षक, 5,772 शिक्षक और 432 व्याख्याता शामिल थे। जिसका मकसद था इन संवेदनशील क्षेत्रों में शिक्षा की गुणवत्ता सुधारना…। लेकिन अब कुछ प्रभावशाली शिक्षक परिवीक्षा अवधि पूरी होते ही मैदानी क्षेत्रों में ट्रांसफर की कोशिश में जुटे है..! अगर ऐसे वीआईपी ट्रांसफर हुए तो पुराने शिक्षकों के साथ-साथ इन क्षेत्रों की शिक्षा व्यवस्था पर भी असर हो सकता है..।

यह भी जानकारी हो कि साय सरकार ने 18 महीनों में शिक्षकों के लिए कोई स्पष्ट ट्रांसफर नीति नहीं बनाई। गुपचुप हुए आपसी ,स्वैच्छिक और प्रशासनिक ट्रांसफर में खुलापन नहीं दिखा..। प्रभावशाली लोगों के दबाव में हुए ट्रांसफर ने साबित कर दिया कि व्यवस्था में निष्पक्षता का अभाव रहा है..।

हवा में तैरते शिक्षकों के ट्रांसफर के कयासों पर छत्तीसगढ़ सहायक शिक्षक समग्र शिक्षक फेडरेशन के जशपुर जिले की शिक्षक नेता रीता भगत मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के सबका साथ, सबका विकास के नारे का जिक्र करते हुए कहती है कि अफसरशाही शिक्षकों को बराबरी का मौका नहीं दे रही..। समन्वय में हुए शिक्षकों के ट्रांसफर से शिक्षकों के भीतर असंतोष ने जन्म लेगा इस बात की जानकारी मुख्यमंत्री को नही दी गई होगी और पूर्व में ट्रांसफर सूचियां जारी कर दी गई। पुराने शिक्षक जो सालों से ट्रांसफर का इंतजार कर रहे थे वे खुद को ठगा महसूस कर रहे थे…। अब स्कूल शिक्षा विभाग की पूर्ण कालिक कमान मंत्री गजेंद्र यादव के हाथों में है उन्हें इस परंपरा को खत्म करके सबका साथ सबका विकास के मूल मंत्र को शिक्षकों के ट्रांसफर में भी लागू करने की उम्मीद तो लगती है।

रीता भगत ने महिला शिक्षकों की समस्याओं को भी उठाते हुए बताती है कि 2008 से कई महिला शिक्षक नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सेवा दे रही हैं। विवाह के बाद बदले निवास स्थान, शासकीय सेवा में कार्यरत पति या गंभीर बीमारी जैसे कारणों से इन्हें ट्रांसफर में प्राथमिकता मिलनी चाहिए थी। लेकिन अब तक की सरकारें महिलाओं के मुद्दे पर फाइलों और बैठकों तक सीमित रही है..। रीता कहती है कि 10-15 साल से बस्तर और सरगुजा में सेवा दे रहे शिक्षकों, खासकर महिलाओं, को प्राथमिकता दी जानी चाहिए इसके अलावा साफ सुथरी शिक्षक ट्रांसफर नीति आनी चाहिए साथ ही आपसी आधार पर साल भर ट्रांसफर होने चाहिए।

शिक्षकों का ट्रांसफर युक्ति युक्तिकरण के बाद बड़ा विषय है। तैरते कयासों, रीता की बातों और पूर्व सरकार के कार्यो की कड़ियों से सवाल यह भी खड़ा होता है कि अगर 2022 में बस्तर और सरगुजा में विशेष भर्ती करके पूर्व सरकार ने यहां की व्यवस्था को मजबूत किया है..। ट्रांसफर के बहाने यहां के शिक्षकों को मैदानी क्षेत्रों में भेजा गया तो इसके मायने क्या निकलेंगे ..! कही ऐसा तो नहीं ट्रांसफर की फाइल आगे करके सिस्टम
सरकार को सियासत में उलझाने का कोई मंत्र गढ़ रहा है..। या फिर ये सिर्फ मुट्ठी भर लोगों का कयास ही है कि विभाग गुपचुप शिक्षकों का ट्रांसफर करने की तैयारी कर रहा है..!

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