पेड़ों की राजनीति. कांग्रेस में तकरार..भूपेश-बैज आमने-सामने

रायपुर…छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले में पेड़ों की अंधाधुंध कटाई के खिलाफ विरोध प्रदर्शन अब कांग्रेस पार्टी के भीतर नई राजनीतिक खींचतान का कारण बन गया है। इस घटनाक्रम ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि भले ही कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने पार्टी को एकजुट रहने की नसीहत दी हो, लेकिन छत्तीसगढ़ में अंदरूनी मतभेद गहराते जा रहे हैं।
बिना सूचना प्रदर्शन, नेतृत्व अनजान
बीते 4 जुलाई को पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने रायगढ़ में जंगल कटाई के विरोध में 19 विधायकों के साथ अचानक सड़क पर उतरकर प्रदर्शन किया। यह कदम उस वक्त और ज्यादा चौंकाने वाला बन गया, जब यह सामने आया कि इस विरोध की कोई पूर्व सूचना न तो प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज को दी गई थी, और न ही पार्टी के किसी औपचारिक मंच पर इसकी चर्चा हुई थी।
सूत्रों के अनुसार, यह प्रदर्शन भूपेश बघेल की व्यक्तिगत रणनीति का हिस्सा था, जिसमें उन्होंने कुछ विधायकों को सीधे आमंत्रित किया, तो कुछ को अपने खास सहयोगियों के जरिए बुलाया। इसे कांग्रेस के भीतर सत्ताकेंद्रों की बदलती दिशा और शक्ति संतुलन के प्रयास के रूप में भी देखा जा रहा है।
पार्टी में ‘अंदर – बाहर’ की बयानबाजी
हालांकि, सार्वजनिक रूप से दीपक बैज और भूपेश बघेल दोनों ही एकजुटता और अनुशासन की बात कर रहे हैं। दीपक बैज ने मीडिया से बातचीत में कहा, “जंगल कटाई का मुद्दा बेहद गंभीर है और कांग्रेस इस पर बड़ी लड़ाई लड़ने की तैयारी में है। पार्टी एकजुट है और इस पर आगे की रणनीति मिलकर तय की जाएगी।”
वहीं शिकायत की खबरों को अफवाह बताते हुए उन्होंने कहा, “मेरे पास ऐसी कोई सूचना नहीं है, मीडिया को बिना पुष्टि के खबरों से बचना चाहिए।”
लेकिन सूत्र बताते हैं कि पार्टी के भीतर इस ‘अचानक प्रदर्शन’ को लेकर नाराज़गी साफ दिखाई दे रही है, और इसकी शिकायत कांग्रेस आलाकमान व प्रभारी सचिन पायलट तक पहुंचाई गई है।
पर्यावरण की चिंता या राजनीतिक संदेश?
अब सवाल उठ रहा है कि क्या यह विरोध वास्तव में वनों की कटाई के खिलाफ एक जनहित प्रयास था, या इसके जरिए पूर्व मुख्यमंत्री ने पार्टी में अपनी मौजूदगी और नेतृत्व क्षमता का प्रदर्शन किया? राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह घटनाक्रम भूपेश बघेल की सक्रियता और गुटीय समीकरणों को पुनर्संतुलित करने की कोशिश का हिस्सा हो सकता है।
खड़गे की नसीहतों पर सवाल
गौरतलब है कि कुछ ही दिन पहले कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने छत्तीसगढ़ कांग्रेस को आपसी मतभेद भुलाकर एकजुट रहने की सख्त सलाह दी थी। लेकिन रायगढ़ की यह घटना बताती है कि जमीनी हकीकत अभी भी अलग है — पार्टी के भीतर अंदरूनी दरारें मिटने के बजाय और चौड़ी होती दिख रही हैं।