Bilaspur

तलाक खत्म..लेकिन दोनों रहेंगे अलग अलग… हाई कोर्ट ने कहा पाई पाई का रखना होगा हिसाब

यह रहा उसी घटना पर आधारित एक सटीक, प्रभावशाली और मौलिक शैली में तैयार किया गया समाचार रिपोर्ट, जो स्पष्ट रूप से किसी कॉपी या नकल से भिन्न है:


  • तलाक नहीं, समझौता बना रास्ता: हाईकोर्ट की पहल पर पति-पत्नी साथ तो रहेंगे, पर अलग-अलग मंज़िलों पर

बिलासपुर | 31 जुलाई 2025
छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले से एक असाधारण पारिवारिक विवाद का निपटारा हाईकोर्ट में अनोखे समझौते के साथ हुआ है। तलाक की दहलीज तक पहुंच चुके पति-पत्नी ने साथ तो रहने का फैसला किया, लेकिन अपनी-अपनी सीमाओं और शर्तों के साथ।

हाईकोर्ट की पहल पर दोनों ने आपसी रजामंदी से 6 बिंदुओं पर सहमति जताई है। समझौते के मुताबिक, दोनों एक ही मकान में अलग-अलग मंजिलों पर रहेंगे — पति नीचे (ग्राउंड फ्लोर) और पत्नी ऊपर (फर्स्ट फ्लोर)


🏛 फैमिली कोर्ट से हाईकोर्ट तक का सफर

पति-पत्नी के बीच लंबे समय से चल रहा विवाद दुर्ग फैमिली कोर्ट पहुंचा, जहां 9 मई 2024 को तलाक की डिक्री पारित हुई थी। इस फैसले को पत्नी ने छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में चुनौती दी, जिसके बाद मामला सुलह की दिशा में बढ़ा।

28 अप्रैल 2025 को गवाहों की मौजूदगी में समझौते का मसौदा तैयार हुआ, जिसे 1 मई को हाईकोर्ट में पेश किया गया। इसके बाद फैमिली कोर्ट की डिक्री रद्द कर दी गई और समझौते को ही अंतिम मान्यता दी गई।

समझौते की मुख्य शर्तें 

रहने की व्यवस्था:
दोनों उसी मकान में रहेंगे, मगर अलग-अलग मंजिलों पर। हर व्यक्ति अपनी मंजिल की मरम्मत, सफाई और अन्य कार्यों का जिम्मेदार होगा।

खर्चों का बराबरी से वहन:
बिजली, पानी, संपत्ति कर, मेंटेनेंस जैसे साझा खर्च दोनों बराबर चुकाएंगे। भुगतान का रिकॉर्ड रखना अनिवार्य होगा।

स्वतंत्र वित्तीय जीवन:
वेतन, पेंशन, व्यक्तिगत आय और बैंक खातों में कोई हस्तक्षेप नहीं होगा। कोई भी पक्ष दूसरे की संपत्ति में बिना लिखित अनुमति के दखल नहीं देगा।

संशोधन की छूट:
प्रत्येक पक्ष अपने हिस्से में निर्माण या सुधार कर सकता है, लेकिन इससे दूसरे की जगह प्रभावित नहीं होनी चाहिए। ऐसा कोई भी कार्य करने से पहले 30 दिन पूर्व सूचना देना अनिवार्य है।

सामाजिक स्वतंत्रता:
दोनों को व्यक्तिगत यात्रा, अलग स्थानों पर रहने और अपने सामाजिक संबंध बनाने की पूरी स्वतंत्रता होगी। किसी भी पक्ष को दूसरे के रिश्तेदारों के साथ सामाजिक सहभागिता के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा।

  • चिकित्सा सुविधा:
    पति, पत्नी को केंद्रीय हॉस्पिटल की स्वास्थ्य सुविधाएं दिलाने के लिए औपचारिकताएं पूरी करेगा। हालांकि खर्च और शुल्क पत्नी स्वयं वहन करेगी।

अदालत का रुख

जस्टिस रजनी दुबे और जस्टिस सचिन सिंह राजपूत की खंडपीठ ने इस समझौते को एक स्वतंत्रता और सहअस्तित्व पर आधारित वैकल्पिक समाधान माना। अदालत ने स्पष्ट किया कि यह निर्णय विवाह को बनाए रखते हुए व्यक्तिगत स्वायत्तता सुनिश्चित करने के लिए लिया गया है।

 खुलेगा अदालत का दरवाज़ा

हाईकोर्ट ने आदेश में यह भी कहा कि यदि भविष्य में समझौते की किसी शर्त का उल्लंघन होता है, तो दोनों में से कोई भी पक्ष अदालत का दरवाज़ा खटखटा सकता है।

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