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CG NEWS:बिलासपुर के बुजुर्गों का अनूठा प्रयोग -“बुढ़ापा नहीं… यह तो जिंदगी की दूसरी पारी है…..!”

CG NEWS:बिलासपुर।उम्र भले ही साठ के पार हो चुकी हो, लेकिन दिल अब भी किशोर है। ज़िम्मेदारियों का दौर कब का बीत चुका, और अब बारी है खुद को जीने की। बिलासपुर के कुछ वरिष्ठ नागरिकों ने तय कर लिया है कि वे अब न कोई शिकायत करेंगे, न अफसोस। वे तो बस हँसेंगे, मुस्कराएँगे, और इस दुनिया को बता देंगे कि “बुढ़ापा एक सोच है, सच नहीं।”

इसी सोच के साथ जन्मा है ‘केशव-माधो’ — एक ऐसा समूह जो उम्र से नहीं, उमंग से परिभाषित होता है।हर शाम भारतीय नगर स्थित माधो तालाब सह उद्यान में ये ‘वरिष्ठ युवक’ जमा होते हैं। कोई अपने पुराने जोक्स सुनाता है, कोई ज़माने की नई घटनाओं पर तंज करता है। और फिर शुरू हो जाती है ठहाकों की बारिश — बिना किसी मौसम के।

बिलासपुर की फिज़ाओं में जब उनकी हँसी गूंजती है, तो लगता है जैसे उम्र थम गई हो और समय भी मुस्कराने लगा हो।इस टोली की सबसे बड़ी खासियत यह है कि ये बुजुर्ग अपने ऊपर हँसने से भी नहीं चूकते।“अब सुनाई कम देता है, लेकिन जब बीवी कुछ सुनाने लगे, तो यही बहाना काम आता है,” कहते हैं 72 वर्षीय श्री गुप्ता और फिर पूरी टोली हँसी में डूब जाती है।
कोई कहता है — “घुटनों ने धोखा दे दिया, लेकिन दिल अब भी मैच खेलने को तैयार है!”

बुधवार को इस समूह ने आयकर रोड स्थित होटल वनक्कम में एक स्नेह मिलन और स्वल्पाहार कार्यक्रम का आयोजन किया। न कोई औपचारिकता, न भाषण — सिर्फ आत्मीयता और ठहाके।
होटल में मौजूद अन्य ग्राहक भी इस टोली को देखकर मुस्कुरा उठे। साफ था कि मुस्कान संक्रामक होती है — उम्र नहीं देखती।

केशव-माधो’ सिर्फ एक समूह नहीं, एक ज़रूरत बन गया है — उन बुजुर्गों के लिए जो अपने बच्चों की व्यस्त ज़िंदगी में अकेले पड़ गए थे। यहाँ उन्हें न केवल साथ मिला है, बल्कि अपनेपन की गर्माहट भी।

इस पहल से यह साफ हो जाता है कि बुजुर्गों को सिर्फ सहारा नहीं, संवाद चाहिए। उन्हें यह अहसास चाहिए कि वे अब भी इस समाज का जीवंत हिस्सा हैं, बोझ नहीं।

सीख यही है कि अनुभव की खान बुजुर्ग ऐसी ठौर तलाशे- जहाँ लोग खुद पर हँसना सीखें, खुदा को भी मुस्कुराना सिखाएँ — और बताएं कि जीवन कभी रिटायर नहीं होता।बस ज़रूरत है ठिठोली की, थोड़ी सी चाय की… और ढेर सारी मुस्कानों की।

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