CG NEWS:प्याऊ घर की लुप्त होती छांव – संवेदनाओं के सूखते स्रोत को सूरजपुर के कलेक्टर एस.जयवर्धन और बिलासपुर के एक स्कूल के शिक्षकों ने जिंदा रखने की एक कोशिश जारी रखी

CG NEWS (मनीष जायसवाल) ।गर्मी और क्षेत्र की स्थिति को देखते हुए सूरजपुर जिले के कलेक्टर एस.जयवर्धन ने गर्मी की तपिश से राहगीरों को राहत देने के लिए प्याऊ स्थापित करने का आदेश दिया था। कुछ प्याऊ शुरू हो गए , लेकिन सिर्फ यह खबर नहीं है..। यह प्रशासनिक पहल हमारी उस सांस्कृतिक धरोहर का आव्हान है, जो कभी समाज के दिल में बसी थी। प्याऊ घर वह प्रतीक है जो प्यास बुझाने के साथ-साथ मानवता की संवेदना को जीवंत करता था..! जो आज के दौर के बोतलबंद पानी और पाउच की व्यावसायिक लहर में अपनी सांसें गिन रहा है।
हमारा समाज हमेशा से गतिशील रहा है। परंपराएं बनीं टूटीं और समय के साथ नए रंग में रंग गई लेकिन मानवता आज भी वही है..! प्याऊ को लेकर पुराने दिनों की याद आज भी लोगों के जेहन में ताजा है। गर्मी के मौसम में कही किसी पेड़ के नीचे बांस के टाट और मिट्टी के घड़े से सजा प्याऊ राह चलते लोगों के लिए सुकून दिलाने वाला स्थान हुआ करता था। कभी बस स्टैंड और शहरों के रेलवे स्टेशनों पर गर्मियों में स्वयंसेवी पानी पिलाते थे। उनकी एकमात्र प्रार्थना होती पानी पीजिए, भर लीजिए पर बर्बाद न करें। उनके लिए दुआएं दिल से निकलती थीं।
पहले दुकानों के सामने भी पानी का मटका रखा होता था अब बहुत से दुकानदारों ने अपने प्रतिष्ठानों से पानी का इंतजाम ही हटा लिया है आज एक गिलास पानी के लिए जद्दोजहद करनी पड़ती है और मिल भी जाए तो ठंडा नहीं होता या फिर साफ सुथरा नहीं होता। यह बदलाव का दौर है। बोतल और पाउच की संस्कृति ने प्याऊ को हाशिए पर धकेल दिया है। वाटर कूलर और डिस्पेंसर ने प्याऊ की जगह ले ली है..! उसके बाद भी कमी बनी हुई है।
भारतीय वैदिक परंपरा में राहगीरो, पक्षियों और मवेशियों की प्यास बुझाना पुण्य का कार्य था। गांव-कस्बों से लेकर शहरों तक
गर्मियों में प्याऊ की छांव हर कहीं दिखती थी। सामाजिक संगठन और स्थानीय निकाय इन्हें संचालित करते थे। इसके लिए बजट भी होता था।
कभी अखबारों में खबरें छपती थी अमुक प्याऊ घर बंद पड़ा है..! निगम को राहगीरों की चिंता नहीं ..! लेकिन आज तो प्याऊ का नाम ही गायब है। सड़क किनारे घड़े और चुल्लू से पानी पीते लोग अब स्मृतियों का हिस्सा बन चुके हैं।
यह बदलाव केवल भौतिक नहीं बल्कि भावनात्मक और सांस्कृतिक भी है। प्याऊ घर की परंपरा के साथ एक संवेदना भी सूख रही है..! पानी पिलाने का कार्य जो कभी पुण्य हुआ करता था अब व्यावसायिकता की भेंट चढ़ चुका है..! बाजार ने पानी को भी मुनाफे का सौदा बना दिया है।
ऐसे में सूरजपुर जिले के कलेक्टर एस जयवर्धने की यह पहल तारीफ के काबिल है लेकिन इसे केवल कागजी आदेश तक सीमित नहीं रहना चाहिए। प्रदेश के अन्य जिलों में भी व्यवस्था के जिम्मेदार लोगों को इस और ध्यान देना चाहिए। इसके साथ ही बिलासपुर के प्राथमिक शाला तिफरा स्कूल शिक्षक रंजीत बनर्जी सहित स्कूल के सभी शिक्षकों से प्रेरणा लेनी चाहिए..! उन्होंने अपने पैसे से राहगीरों के लिए अस्थाई प्याऊ घर की व्यवस्था की है। ऐसे ही सामुदायिक भागीदारी, सामाजिक संगठनों का सहयोग और जागरूकता के जरिए प्याऊ घर को फिर से जीवित किया जा सकता है। क्योंकि धड़े की ठंडक ना तो वाटर कूलर में है ना ही बंद बोतल पानी में है।