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CG NEWS:फुल टाइम शिक्षा मंत्री के अभाव में सुधार का ब्लूप्रिंट तैयार, युक्तियुक्तकरण पर संशय बरकरार

CG NEWS:बिलासपुर (मनीष जायसवाल) । छत्तीसगढ़ के स्कूल शिक्षा विभाग में बड़े पैमाने पर प्रशासनिक सुधार की शुरुआत होने वाली है। जिसके तहत शिक्षकों और स्कूलों का युक्तिकरण किया जाएगा, जिसका मकसद शिक्षक-छात्र अनुपात को संतुलित करना, अतिशेष शिक्षकों का समायोजन और कम नामांकन या कम छात्रों की दर्ज संख्या वाले स्कूलों का युक्ति युक्तिकरण करना है..। नीति नियम पहले से बन चुके है। इसके कुछ बिंदुओं पर शिक्षक संघों ने मंत्रालय संचालनालय के अधिकारियों के सामने पूर्व में आपत्ति दर्ज कराई थी इसलिए शिक्षक संघ यह मान कर चल रहे है कि आपत्तियों में सुधार करते हुए संशोधित नियम फिर से जारी होंगे। लेकिन एक वर्ग का मानना है कि इससे धरातल पर लाने के लिए राजनीतिक नेतृत्व यानी विभाग का फूल फ्लेश मंत्री जरूरी है। उनके बिना इस युक्ति युक्तिकरण के नीति नियमों में आई खामियों को दूर नहीं किया जा सकता.! अफसरों के भरोसे यह प्रक्रिया अधूरी और विवादित हो सकती है। जैसे बीएड किए हुए बर्खास्त सहायक शिक्षकों की जगह डीएड किए हुए शिक्षकों की पदस्थापना में शाला चयन की प्रकिया जो सवालों के घेरे में है..!

युक्तिकरण में सबसे बड़ा मुद्दा तो मिडिल स्कूलों में विषय बाध्यता जैसे मुद्दों को हल किए बिना युक्ति युक्तिकरण कार्यान्वयन संभव नहीं। मिडिल स्कूलों में तो दर्ज संख्या के साथ विषय अनुपात का भी ध्यान रखना है जबकि राजपत्र के मुताबिक प्रचलन में शिक्षक भर्ती पदोन्नति में जो वर्तमान नियम है उसमें विषय बाध्यता नहीं है, तो शिक्षा व्यवस्था के संचालन में विषय आधारित नियम कैसे हो सकता है।यही वजह है कि आठवीं बोर्ड परीक्षा में कला का शिक्षक विज्ञान और विज्ञान का शिक्षक हिंदी की उत्तर पुस्तिका जांच रहा है।

नीति नियम के जानकार शिक्षक आशंका जता रहे है कि कई नीतिगत खामियों के चलते यह मामला कानूनी अड़चनों के झमेले में उलझ भी सकता है। युक्तिकरण के लिए नियोक्ता की जगह जिला कलेक्टरों को अधिकार दिया जाना भी कही से न्याय संगत नहीं लग रहा है। इसके अलावा विषय बाध्यता मुद्दा तो बन ही हुआ है।

शिक्षक यह भी मानते है कि अगर सबको साथ लेकर युक्तियुक्तकरण किया गया तो यह सुधार शिक्षा व्यवस्था में क्रांतिकारी बदलाव भी लेकर आएगा। शिक्षकों की कमी बहुत हद तक दूर हो जाएगी। वैसे भी शिक्षक-छात्र अनुपात में संतुलन, संसाधनों का बेहतर उपयोग और स्कूलों की गुणवत्ता बढ़ाना इस सुधार के मुख्य लक्ष्य हैं।अब शासन का नीति नियमों के साथ कदम इसकी सफलता तय करेगा।

मालूम हो कि राज्य में कई स्कूलों में शिक्षकों की संख्या ज़रूरत से ज़्यादा है, तो कहीं छात्रों के मुकाबले शिक्षक कम हैं। कम नामांकन वाले स्कूलों के संसाधनों के बेहतर उपयोग पर भी सरकार का फोकस है। यह कदम शिक्षा व्यवस्था को मज़बूत और प्रभावी बनाने की दिशा में अहम माना जा रहा है। लेकिन पूर्णकालिक शिक्षा मंत्री के बिना नेतृत्व की कमी चुनौती बन रही है। हालांकि शिक्षा विभाग की कमान वर्तमान में मुख्यमंत्री के पास है, लेकिन उनके 18-19 घंटे के व्यस्त कार्य प्रोटोकॉल और सबसे बड़े मानव संसाधन वाले इस विभाग की ज़िम्मेदारी को लेकर सवाल अब उठ रहे हैं। संवाद की कड़ी शिक्षक समुदाय से अफसरों तक सीमित है, जो अब तक निर्णायक भूमिका में नज़र नहीं आए है। युक्ति युक्तिकरण की नीति तैयार है, लेकिन विभाग में नेतृत्व का अभाव और संभावित कानूनी अड़चनें इसे जटिल बना रही हैं। अब सभी की निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि यह योजना कब और कैसे धरातल पर उतरेगी।

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