43 घंटे बाद झाड़ियों में मिलीं तेजस की लाश… परिवार का फूटा गुस्सा —सवाल..घटना के लिए जिम्मेदार कौन ?

बिलासपुर…हरेली पर्व के दिन जब पूरा गांव खुशियों में डूबा थाl ठीक उसी शाम खम्हरिया गांव का साहू परिवार अकल्पनीय मातम में डूब गया। तुंगन नाले की तेज धार ने महज तीन साल के मासूम तेजस साहू की जिंदगी छीन ली। 43 घंटे की बेतहाशा खोजबीन के बाद उसका शव एक झाड़ी में फंसा मिला — इसके बाद गांव में चीख-पुकार मच गई।
तुंगन नाले की मौत बनती धार
घटना बुधवार शाम की है। मोहनलाल साहू उर्फ भोला अपने परिवार के साथ वेगनआर कार CG 11 MA 0663 में शिव शक्ति पीठ मंदिर से दर्शन कर लौट रहे थे। कार में 9 लोग थे, जिनमें 5 छोटे बच्चे भी शामिल थे। जैसे ही गाड़ी तुंगन नाले के जर्जर पुल पर पहुंची, कार तेज बहाव में बह गई। कुछ लोग तैरकर बच निकले, कुछ को ग्रामीणों ने बचाया, लेकिन 3 साल के तेजस का कहीं पता नहीं चला।
43 घंटे का दर्दनाक इंतजार
रात के अंधेरे और तेज पानी के चलते बचाव कार्य तुरंत शुरू नहीं हो सका। अगले दिन SDRF, सीपत पुलिस और ग्रामीणों की मदद से सर्च ऑपरेशन शुरू किया गया। 43 घंटे बाद, करीब 500 मीटर दूर बबूल के पेड़ की झाड़ियों में, तेजस का शव मिला — बताया गया कि शव सड़ चुका है।
पुल नहीं, ‘मौत का रास्ता’ बना ढांचा
जानकारी के बाद ग्रामीणों का ग़ुस्सा प्रशासन के प्रति फूट पड़ा। ग्रामीणों ने बताया कि पुल 1994-95 में बना थाl अब पूरी तरह जर्जर है।पुल पर ना तो रेलिंग है.l और ना ही चेतावनी बोर्ड — यह पुल मौत का पर्याय हो गया है।हर साल बरसात में हादसे होते हैं, लेकिन प्रशासन आंख मूंदे बैठा है।कई बार शिकायतें, ज्ञापन, गुहार दी गई, मगर हर बार सिर्फ आश्वासन मिला।
आखिर शासन की नींद कब खुलेगी?
हर साल बारिश में बहते मासूम, हर बार एक नया शव — क्या यही छत्तीसगढ़ का ‘स्मार्ट गांव’ और ‘सुरक्षित सड़क’ मॉडल है?सवाल उठता है:क्या बिना सुरक्षा के पुल को चालू रखना आपराधिक लापरवाही नहीं? क्यों नहीं मानसून से पहले ऐसे पुलों की सुरक्षा समीक्षा होती?हर बार जान जाने के बाद ही कार्रवाई क्यों होती है?
अब मुआवजा नहीं, जिम्मेदारी तय होनी चाहिए
मासूम तेजस की मौत कोई साधारण दुर्घटना नहीं — यह सिस्टम की संगीन चूक का नतीजा है। अब केवल संवेदना और मुआवज़ा नहीं, बल्कि ठोस प्रशासनिक जवाबदेही चाहिए: तुंगन नाले के पुल की तत्काल मरम्मत और सुरक्षा गार्डिंग की जाएl मॉनसून में खतरे वाले पुलों की सूची बनाकर उन्हें अस्थायी रूप से बंद किया जाएदोषी इंजीनियरों और प्रशासनिक अधिकारियों पर कार्रवाई होमृतक परिवार को मुआवजा, पुनर्वास और मनोवैज्ञानिक सहायता मिले
तेजस की मौत एक चेतावनी है
पुलों पर सुरक्षा नहीं, जब सिस्टम मौन है, ऐसे में हर नागरिक असुरक्षित है। तेजस अब नहीं लौटेगा, लेकिन उसकी मौत प्रशासन की आंखें खोल सकती है — अगर अब भी कुछ नहीं बदला, तो अगला नंबर किसी और मासूम का हो सकता है l