Probationary Employee : परिवीक्षाधीन कर्मचारियों को राहत..हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, सेवा समाप्ति को बताया असंवैधानिक

Probationary Employee/छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने परिवीक्षाधीन कर्मचारियों के अधिकारों को लेकर फैसला सुनाया है। हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने स्पष्ट किया कि स्वीकृत और नियमित पद पर कार्यरत किसी भी परिवीक्षाधीन कर्मचारी को सिर्फ इस आधार पर सेवा से नहीं हटाया जा सकता कि उसकी सेवाओं की आवश्यकता नहीं है। यह संविधान के अनुच्छेद 311(2) का सीधा उल्लंघन है।
इस मामले की शुरुआत दुर्ग जिला न्यायालय में कार्यरत स्टेनोग्राफर दीशान सिंह से हुई, जिन्हें मार्च 2018 में 11 अन्य उम्मीदवारों के साथ नियमित पद पर नियुक्त किया गया था।
एक साल बाद उन्होंने न्यायिक व्यवस्था में उच्चाधिकारियों के दुर्व्यवहार की शिकायत की, जो बाद में वॉट्सऐप के जरिए वायरल हो गई और हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल तक पहुंच गई। इसके आधार पर दीशान सिंह पर आचरण संहिता के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए दिसंबर 2019 में उनकी सेवा समाप्त कर दी गई।
इस सेवा समाप्ति के खिलाफ दीशान सिंह ने हाईकोर्ट की सिंगल बेंच में याचिका दाखिल की, जिसे 2022 में खारिज कर दिया गया था। कोर्ट ने कहा था कि परिवीक्षाधीन कर्मचारी को आवश्यकता न होने पर हटाया जा सकता है। लेकिन डिवीजन बेंच में अपील के बाद इस आदेश को निरस्त कर दिया गया।
बेंच ने कहा कि याचिकाकर्ता की नियुक्ति पूरी तरह नियमित थी और सेवा समाप्ति से पहले कोई जांच नहीं की गई। यह निर्णय न केवल अनुच्छेद 311(2) के खिलाफ है, बल्कि छत्तीसगढ़ सिविल सेवा नियमों का भी उल्लंघन है।
कोर्ट ने यह भी कहा कि किसी भी कर्मचारी को दंडात्मक रूप से हटाने से पहले उसे उचित जांच प्रक्रिया का अवसर दिया जाना चाहिए।
डिवीजन बेंच ने याचिकाकर्ता को राहत देते हुए आदेश दिया कि उन्हें बकाया वेतन का 50 प्रतिशत भुगतान किया जाए। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि कोई संस्था यह दावा करती है कि कर्मचारी लाभप्रद रूप से कहीं और कार्यरत था, तो इसे साबित करने के लिए ठोस साक्ष्य प्रस्तुत करना आवश्यक है।