निजता का उल्लंघन नहीं..हाई कोर्ट का फैसला..पत्नी का कॉल डिटेल मांगना असंवैधानिक

बिलासपुर..छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने एक अहम और ऐतिहासिक फैसले में स्पष्ट किया है कि निजता का अधिकार संविधान से संरक्षित मौलिक अधिकार है। कोर्ट ने एक पति द्वारा पत्नी की मोबाइल कॉल डिटेल रिकॉर्ड (सीडीआर) हासिल करने की याचिका को सख्ती से खारिज करते हुए कहा कि ऐसी मांग व्यक्तिगत जीवन और स्वतंत्रता के उल्लंघन के समान है।
क्या है पूरा मामला?
मामला दुर्ग जिले के एक युवक से जुड़ा है, जिसका विवाह 4 जुलाई 2022 को राजनांदगांव निवासी युवती से हुआ था। विवाह के कुछ ही दिनों बाद संबंधों में खटास आ गई। पति ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13(1)(i) के अंतर्गत तलाक की याचिका दाखिल की, साथ ही वैवाहिक अधिकारों की पुनर्स्थापना हेतु भी याचिका (धारा 9) लगाई।
दूसरी तरफ पत्नी ने भी पति के खिलाफ धारा 125 CrPC के तहत भरण-पोषण की मांग की और साथ ही पति के माता-पिता व भाई के खिलाफ घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत कार्यवाही की।
इसी दौरान पति ने पत्नी की कॉल डिटेल प्राप्त करने हेतु एसएसपी, दुर्ग को आवेदन दिया। पुलिस द्वारा जानकारी न देने पर उसने पहले पारिवारिक न्यायालय और फिर उच्च न्यायालय में याचिका दायर की।
हाई कोर्ट का स्पष्ट रुख:
जस्टिस राकेश मोहन पांडेय की एकल पीठ ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि:विवाह विच्छेद की याचिका में व्यभिचार या संदेह जैसा कोई आरोप नहीं लगाया गया, जिससे कॉल डिटेल की मांग को औचित्य नहीं दिया जा सकता।निजता का अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत संरक्षित है, जिसमें मोबाइल पर हुई निजी बातचीत भी शामिल है।
- कोर्ट ने कहा,
“पति-पत्नी के बीच रिश्तों की पारदर्शिता आवश्यक हो सकती है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि एक पक्ष दूसरे की निजी जानकारी पर अधिकार जमा ले।”
विवाह का अर्थ निजता का त्याग नहीं”:
कोर्ट ने यह भी कहा कि विवाह, साझेदारी का संबंध है — स्वामित्व का नहीं।पति-पत्नी दोनों के पास अपने व्यक्तिगत जीवन, संचार और गोपनीयता का पूरा अधिकार है।कोई भी पति अपनी पत्नी को मोबाइल या बैंक पासवर्ड साझा करने के लिए बाध्य नहीं कर सकता।
“ऐसी मांग निजता का उल्लंघन और संभवतः घरेलू हिंसा की श्रेणी में आएगी,” कोर्ट ने कहा।
हाई कोर्ट का फाइनल फैसला
इन तथ्यों और संवैधानिक प्रावधानों के आधार पर छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने परिवार न्यायालय के फैसले को सही ठहराते हुए पति की याचिका को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि:
“किसी भी व्यक्ति की अंतरंग बातचीत, चाहे वह विवाहित हो या अविवाहित, उसकी निजता का अभिन्न हिस्सा है और उसे बिना पर्याप्त कानूनी आधार के उजागर नहीं किया जा सकता।”