Chhattisgarh

किसी भी व्यक्ति को..इसके लिए गुस्सा नहीं निकाल सकता…हाईकोर्ट ने बताया..मायने रखती है घायल चश्मदीद की गवाही

नक्सली मोर्चा में तैनात अपने ही साथियों को गोली मारकर हत्या

बिलासपुर— घायल चश्मदीद गवाह की गवाही का साक्ष्य में बहुत महत्व है। ऐसी गवाही को तब तक अविश्वसनीय नहीं माना जा सकता जब तक कि उसमें पर्याप्त विसंगतियां या विरोधाभास न हों । इस आशय के निर्देश के साथ ही हाईकोर्ट ने चार लोगों की जान लेने वाले आरोपी सशस्त्र बल के कांस्टेबल की क्रिमिनल अपील को खारिज कर दिया है।

संत कुमार निवासी यूपी सीआर पीएफ बटालियन केम्प बासागुडा बस्तर में कांस्टेबल पदस्थ था। सब इंस्पेक्टर विक्की शर्मा से ड्यूटी के समय को लेकर विवाद चल रहा था । 9 दिसंबर 2017 की शाम साढ़े चार बजे बटालियन परिसर में दोनों के बीच  झगड़ा हो गया । संत कुमार ने सर्विस रायफल ए के 47 से सब इंस्पेक्टर विक्की शर्मा , ए एस आई राजीव सिंह , मेघ सिंह  पर फायर कर मोके पर ही मार डाला ।घटना में एस आई गजानंद घयल हुआ ।

 गजानन्द ने  किसी तरह दौड़कर जान बचाई।  कांस्टेबल शंकर राव मनोरंजन कक्ष में छिपा हुआ था। संत कुमार ने फायर कर मार डाला । इस तरह फायरिंग में चार की मौत एक गंभीर रूप से घायल हो गया। एफ़आइआर के बाद संत मुकार को गिरफ्तार किया गया। मामला सेशन कोर्ट में चला. । ट्रायल कोर्ट ने आईपीसी की धारा 307 और 302 का दोषी मानते हुए अलग अलग 7 साल की सजा का फरमान सुनाया।

फैसले के खिलाफ आरोपी ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। अपील पर हाईकोर्ट चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और  जस्टिस बीडी गुरु की डीबी में सुनवाई हुई । कोर्ट ने तर्क और बहस के बाद माना कि , सशस्त्र बलों के कर्मियों की कार्य स्थितियां अत्यंत खतरनाक और घातक हो सकती हैं। युद्ध तथा शांति दोनों ही स्थितियों में विभिन्न प्रकार के खतरों का सामना करना शामिल है।

इन खतरों से तत्काल और दीर्घकालिक स्वास्थ्य समस्याएं, चोट और मृत्यु भी हो सकती है। बिना छुट्टी के लंबे समय तक काम करना और कठिन वातावरण किसी भी व्यक्ति को अपने सहकर्मियों की मृत्यु का कारण बनकर अपना गुस्सा निकालने का अधिकार नहीं देता है।अपीलकर्ता सशस्त्र बल का सदस्य होने के नाते नक्सलियों से क्षेत्र के लोगों की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार था। लेकिन अपने कर्तव्य का पालन करने के बजाय, अपीलकर्ता ने साथी सदस्यों पर दो असॉल्ट राइफलों से अंधाधुंध गोलीबारी किया। किसी भी तरह से आईपीसी की धारा 304 भाग 1 या II के तहत नहीं आता है।

.यह दिया अंतिम आदेश

डीबी ने कहा कि, अभियोजन पक्ष के गवाहों की तरफ से पेश किये गए बयान के विश्लेषण पर हम इस निर्णय पर पहुंचे हैं कि अभियोजन पक्ष अपने मामले को उचित संदेह से परे साबित करने में सफल रहा है। परीक्षण न्यायालय ने अपीलकर्ता के अपराध के संबंध में निष्कर्ष पर पहुंचने में कोई कानूनी या तथ्यात्मक त्रुटि नहीं की है। इसलिए अपील में कोई दम नहीं होने के कारण खारिज किया जाता है।

Back to top button