20 साल की सजा टूटी, 7 साल पर थमी –सुप्रीम कोर्ट का नाबालिग केस में ऐतिहासिक फैसला

नई दिल्ली.. सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम आदेश में कहा है कि केवल नाबालिग लड़की के निजी अंगों को छूने के आरोप पर किसी व्यक्ति को दुष्कर्म या पेनेट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट का दोषी नहीं ठहराया जा सकता। शीर्ष अदालत ने छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के फैसले को संशोधित करते हुए अपीलकर्ता लक्ष्मण जांगड़े की सजा 20 साल से घटाकर 7 साल कर दी।
जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने कहा कि मेडिकल रिपोर्ट, पीड़िता के बयानों और गवाहों की गवाही में ‘पेनेट्रेशन’ का कोई सबूत नहीं है। इस आधार पर आईपीसी की धारा 376एबी और पॉक्सो अधिनियम की धारा 6 के तहत दी गई दोषसिद्धि को निरस्त कर दिया गया। अदालत ने माना कि यह अपराध आईपीसी की धारा 354 और पॉक्सो अधिनियम की धारा 9(एम) के अंतर्गत आता है।
सरकार की ओर से दलील दी गई कि आरोपी के प्रति सहानुभूति की जरूरत नहीं है क्योंकि उसने 12 साल की किशोरी के साथ अपराध किया है। हालांकि, पीठ ने स्पष्ट किया कि उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर कठोर धारा लागू नहीं हो सकती।
इस फैसले से एक ओर जहां न्यायालय ने सबूतों के महत्व को रेखांकित किया, वहीं यह भी स्पष्ट किया कि बच्चों के साथ किसी भी प्रकार की यौन छेड़छाड़ गंभीर अपराध है और उसके लिए कानून में कठोर प्रावधान मौजूद हैं।